मैं जल हूँ - Story


 मैं जल हूँ


मैं जल हूँ, जीवन का आधार, सृष्टि का प्राण, और प्रत्येक जीव के अस्तित्व का कारण। बिना मेरे यह दुनिया शून्य है। मेरे बिना पेड़-पौधे मुरझा जाते हैं, जानवर प्यास से तड़पते हैं, और मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। मैं हर जगह हूँ—नदियों में, झीलों में, समुद्रों में, और यहाँ तक कि आपके शरीर में। मेरी कहानी आपकी कहानी से जुड़ी हुई है। आज मैं अपनी आत्मकथा के कुछ पन्ने आपके साथ साझा करना चाहती हूँ।


जब यह ब्रह्मांड बना, तब मैं सबसे पहले अस्तित्व में आया। पृथ्वी पर जीवन का आरंभ मेरे ही कारण हुआ। मैंने इस धरती को अपने जल से सींचा और इसे रहने योग्य बनाया। मेरे आँचल में जीवन के पहले सूक्ष्म जीव उत्पन्न हुए, जिन्होंने धीरे-धीरे विकसित होकर पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों और मनुष्यों का रूप लिया।


मैं नदियों की धाराओं में बहा, झीलों में ठहरा, और समुद्रों में गर्जना की। बादलों के रूप में मैं आसमान में उड़ा और बारिश बनकर पृथ्वी पर बरसा। मैं बर्फ की चादर बनकर पहाड़ों पर जम गया और झरने बनकर नीचे बहा। मैंने खेतों को उपजाऊ बनाया, जंगलों को हरियाली दी, और जीवों को जीवन दिया।


मेरे बिना कुछ भी संभव नहीं है। किसान मेरे भरोसे अपनी फसलें उगाते हैं। घरों में मैं प्यास बुझाने का साधन हूँ। उद्योगों में मैं उत्पादन का मुख्य स्रोत हूँ। बिजली उत्पादन, यातायात, चिकित्सा—हर क्षेत्र में मेरी आवश्यकता है। मैं सबके लिए समान रूप से उपलब्ध हूँ और किसी से कोई भेदभाव नहीं करता।


लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, मनुष्य का मेरे प्रति व्यवहार बदलने लगा। उसने मेरे महत्व को भुला दिया। नदियों को प्रदूषित करना, झीलों को सुखा देना, और समुद्रों में कचरा फेंकना उसकी आदत बन गई। उसने मेरे स्वच्छ और शुद्ध रूप को गंदगी और विषाक्त पदार्थों से भर दिया।


आज मैं व्यथित हूँ। नदियाँ, जो कभी जीवन का स्रोत थीं, अब विष की धाराओं में बदल गई हैं। झीलें सूख रही हैं, और समुद्र प्लास्टिक और तेल से प्रदूषित हो रहे हैं। मेरे जलाशयों को कचरे और रसायनों ने अपवित्र कर दिया है। जो जल कभी जीवन देता था, अब बीमारियाँ फैला रहा है।


मनुष्य का लालच यहीं नहीं रुका। उसने मेरे संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया। जंगल काटे गए, जिससे मेरे जल स्रोत सूखने लगे। जलवायु परिवर्तन ने मेरे चक्र को बिगाड़ दिया। बारिश अनियमित हो गई, जिससे सूखा और बाढ़ का प्रकोप बढ़ गया। ग्लेशियर, जो मेरे मीठे जल के भंडार थे, तेजी से पिघलने लगे।


मैं यह सब देखता हूँ और सोचता हूँ कि क्या मेरा अंत निकट है। लेकिन मैं हार मानने वाला नहीं हूँ। मैं जीवन हूँ और जीवन को बचाने का हर संभव प्रयास करूंगा।


आज भी कुछ लोग हैं, जो मेरे महत्व को समझते हैं। वे नदियों की सफाई कर रहे हैं, जल संरक्षण के उपाय अपना रहे हैं, और दूसरों को जागरूक कर रहे हैं। ये प्रयास मेरे लिए एक नई आशा की किरण हैं।


मैं आप सबसे आग्रह करता हूँ कि मेरा सम्मान करें। मेरी बूँद-बूँद की कीमत समझें। पानी को व्यर्थ न बहाएँ, जलाशयों को प्रदूषित न करें, और मेरे स्रोतों की रक्षा करें। मैं हमेशा आपके जीवन का आधार बना रहना चाहता हूँ, लेकिन यह आपके हाथ में है कि आप मुझे कैसा बनाते हैं।


मैं जल हूँ। मैं शाश्वत हूँ, लेकिन मेरा स्वरूप आपके कर्मों पर निर्भर है। मुझे बचाएँ, क्यों

कि मैं ही जीवन हूँ।


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