मैं खेत हूँ Ki Kahani

 


मैं खेत हूँ


मैं खेत हूँ। धरती की गोद में बसा हुआ, हर जीव के जीवन का आधार। मेरी हरियाली में जीवन की लहरें दौड़ती हैं। मैं ही वह स्थान हूँ, जहाँ मेहनत का पसीना अन्न में बदलता है। किसान मेरी मिट्टी को जोतता है, मेरे भीतर बीज डालता है, और मैं उसे फसलों के रूप में अपना आशीर्वाद देता हूँ। आज मैं अपनी आत्मकथा आपके साथ साझा करना चाहता हूँ।


जब धरती पर पहला इंसान आया, तब उसने मुझे पहचाना। जंगलों में घूमते-फिरते इंसान ने मेरी उपजाऊ मिट्टी को देखा और मुझे अपनी मेहनत से हरा-भरा कर दिया। उसने बीज बोना शुरू किया और फसलें उगाईं। मेरे आँचल में गेहूँ, चावल, दाल, सब्जियाँ और फलों का जन्म हुआ। मैंने उसकी भूख मिटाई और उसकी सभ्यता को आगे बढ़ाया।


मैं केवल अन्न का स्रोत नहीं हूँ। मेरी मिट्टी में जीवन के बीज छिपे हैं। किसान जब हल लेकर मेरे सीने पर चलाता है, तो मैं खुशी से भर उठता हूँ, क्योंकि मुझे पता है कि यह मेहनत आने वाले कल की खुशहाली का आधार बनेगी। जब बारिश की पहली बूंद मेरे ऊपर गिरती है, तो मैं जीवन से भर उठता हूँ। हरियाली की चादर ओढ़े मैं धरती का श्रृंगार करता हूँ।


मेरे लिए किसान सबसे प्रिय है। वह सुबह से शाम तक मेरी सेवा करता है। वह मेरे साथ बातें करता है, मेरी देखभाल करता है, और मुझे अपने परिवार की तरह समझता है। मैं उसके जीवन का हिस्सा हूँ, और वह मेरे।


लेकिन समय के साथ, चीजें बदलने लगीं। इंसान ने मेरी अहमियत को भुला दिया। उसने रसायनों और उर्वरकों का इतना अधिक उपयोग किया कि मेरी मिट्टी की उर्वरता कम होने लगी। पहले मैं हर फसल को खुशी-खुशी उगाता था, लेकिन अब मेरी ताकत धीरे-धीरे खत्म हो रही है।


इसके अलावा, मुझे टुकड़ों-टुकड़ों में बाँटा जाने लगा। मेरी उपजाऊ जमीन पर कंक्रीट के जंगल उगने लगे। जहाँ कभी फसलें लहलहाती थीं, वहाँ अब मकान, फैक्ट्री, और सड़कों का जाल बिछ गया है। मेरी मिट्टी को खोदकर ईंट और पत्थरों से ढक दिया गया।


आज मैं व्यथित हूँ। मेरी हरियाली कम हो रही है। फसलें पहले जैसी नहीं रहीं। किसान, जो कभी मेरी खुशबू से अपना दिन शुरू करता था, अब परेशान है। वह सोचता है कि कैसे मुझे बचाया जाए, लेकिन उसके पास संसाधन नहीं हैं।


मैं देखता हूँ कि मेरी दुर्दशा से पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है। मेरे ऊपर फसलें कम होंगी, तो भोजन की कमी होगी। मेरी मिट्टी कमजोर होगी, तो बारिश का पानी धरती में नहीं समाएगा, जिससे बाढ़ और सूखा दोनों की समस्या बढ़ेगी। मेरी हरियाली कम होगी, तो जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और तेज होगा।


फिर भी, मैं हार मानने वाला नहीं हूँ। मैं जानता हूँ कि मुझे बचाने के लिए अब भी कुछ लोग प्रयास कर रहे हैं। किसान प्राकृतिक खेती की ओर लौट रहे हैं। वे मेरे ऊपर जैविक खाद का उपयोग कर रहे हैं, जिससे मेरी उर्वरता वापस लौट रही है। कुछ लोग वृक्षारोपण कर रहे हैं, मेरी जमीन को फिर से हरियाली से भर रहे हैं।


मैं आप सबसे यही निवेदन करता हूँ कि मेरी रक्षा करें। मुझे अन्न उगाने के लिए स्वतंत्र छोड़ दें। रसायनों का उपयोग कम करें और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दें। मेरी मिट्टी, पानी, और हरियाली को बचाएँ।


मैं खेत हूँ। मैं जीवन का आधार हूँ। मुझे बचाएँ, क्योंकि मेरे बिना यह धरती भूख से तड़पने वाली

 बंजर जमीन बन जाएगी।


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